बाबा मैं तेरी मल्लिका...!
ऐसी बिदाई हो तो,
लम्बी जुदाई
हो तो,
देहलीज़ दर्द
की भी..
पार करा दे .....!
ऊँगली पकड़
के तूने,
चलना सिखाया
था ना..!
देहलीज़ ऊँची
है ये,
पार करा दे.....!
बाबा मैं
तेरी मल्लिका,
टुकड़ा हूँ
तेरे दिल का,
इक बार फिर
से..
देहलीज़ पार करा दे....!
देहलीज देस से लेकर
परदेस तक हो तो, कभी पार कि नही जा सकती.. केहेने को तो विदा हो जाती हैं बेटीया,
पर दिल से विदा कभी होती है क्या बेटीया...? तेरी मल्लिका तेरे दरवाजे पर विदा
होके बार-बार भी क्यो न आये पर उसे तू वही देहलीज फिर से पार करा दे सकता हैं...!
कैसा ए तेरा दिल हैं..? बाबा....! ऐंसी बिदाई हो तो देहलीज दर्द
कि भी पार करा दे...!
मेरी ऊँगली सबसे पेहेले बाबा तुने हि तो पकडी थी, मेरे नाजूक कोमल हातो को तुने ही
तो सबसे पेहेले छुया था..! आज उसी हात को किसी और के हात मे दे दिया...! चलना क्यो
सिखाया? बाबा….! तू चलना ना सिखाता, तो शायद ए बेटीया कही जाती हि नही...! ऊँगली पकड़ के तूने, चलना सिखाया था ना..!
फसलें जो काटी जाए उगती नहीं हैं, बेटीया जो ब्याही
जाए मुडती नहीं हैं...
क्यो इन कटी फसलों से तोला..? ब्याह को…! ए तो कट गयी है क्या सच मे बाबा..?..! बेटीया कभी मूड नही सकती...?...! ऐसी बिदाई हो तो, लम्बी जुदाई हो तो, देहलीज़ दर्द की भी.. पार करा दे .....!
क्यो इन कटी फसलों से तोला..? ब्याह को…! ए तो कट गयी है क्या सच मे बाबा..?..! बेटीया कभी मूड नही सकती...?...! ऐसी बिदाई हो तो, लम्बी जुदाई हो तो, देहलीज़ दर्द की भी.. पार करा दे .....!
बाबा मैं
तेरी मल्लिका, टुकड़ा हूँ तेरे दिल का, देहलीज़ दर्द की भी.. पार करा दे .....!
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